Tuesday, January 13, 2009

उम्मीद........

उम्मीद
-गुलज़ार-
धुप के गर्द को जब पोंछके पंखों से परिंदे
आशियानों की तरफ लोटके आते हैं ज़मीन पर
और पलकों की तरह शाम उतरती हैं फलक से
रात आती हैं बुझा देती हे सब रंगों के चेहरे
अपने दरवाजे पे एक लो का लेगा देता हूँ टीका
तुम अगर लौट के आओ
तो ये दरवाजा न भूलो

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