अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम है
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है
पहले हर चीज़ थी अपनी मगर अब लगता है
अpne he घर में किसी दुसरे घर के हम है
वक्त के साथ हे मिटटी का सफर सदियों का
किसको malum कहाँ के , किधर के हम है
चलते रहते हे की चलना के मुसाफिर का नसीब
सोचते रहते है की किस रह गुज़र के हम है
................................... best of Nida Fazli
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