कई दिनों से मन करता है, डांटे कोई ज़ोर से,
कई दिनों से चाहता है मन, रोएँ जी भर लोर से।
फिर कोई पोंछ दे आँखों को, अपने आँचल की कोर से,
और डांट बन जाए खिलखिली , छूटे जो हर पोर से।
ऐसे छडों के लिए जिंदगी वर्षों तक भरमाती,
ऐसे छडों के लिए साँस भी जल्दी निकल नही पाती,
इतनी छोटी ईंछ्याँ,
पूरी कब जल्दी होती हैं?
सब्र बाँध कर देख रही हूँ ,देर भी कितनी होती है.
1 comment:
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