Tuesday, September 13, 2011

Wednesday, September 07, 2011

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ...

This is one of my fav collection from My old diary.....By Ahmed Faraz. Also a Ghazal Sung By Runa Laila & Mehndi Hasan.That’s great poetry !


"रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ ।


पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ ।


किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ ।


कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ ।


एक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ ।


जैसे तुम्हे आते हैं न आने के बहाने
वैसे ही किसी रोज़ ना जाने के लिए आ

माना की मुहोब्बत को छुपाना भी हैं मुहब्बत
चुपके से किसी रोज़ जताने के लिए आ


अब तक दिल-ए-ख़ुश’फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शम्में भी बुझाने के लिए आ ।            "
 
 
रंजिश=enmity,मरासिम=agreements/relationships, रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया=customs and traditions of the society,सबब=reason, ख़फ़ा=angry,पिन्दार=pride,लज़्ज़त-ए-गिरिया=taste of sadness/tears, महरूम=devoid of, राहत-ए-जाँ=peace of life,दिल-ए-ख़ुश’फ़हम=optimistic heart, शम्में=candles