Friday, October 31, 2008

जुर्रत...Nida Fazli...

दिल में ना हो जुर्रत तो,मुहब्बत नही मिलती
खैरात में इतनी बड़ी ,दौलत नही मिलती।

कुछ लोग शहर में,हमसे भी खफा है
हर एक से अपनी भी,तबियत नही मिलती।

देखा था जिसे मैंने,कोई और था शायद
वो कौन है जिस से तेरी,सूरत नही मिलती

हँसते हुए चेहरों से है,बाज़ार की जीनत,
रोने की यहाँ वैसे भी,फुर्सत नही मिलती।

निकला करो ये शमा लिए,घर से भी बहार
तन्हाई सजाने को,मुसीबत नही मिलती.

1 comment:

Pratibha said...

smita really ur poems are very touching