From one of my childhood friend..................
सूरज की अरुणिमा, ओंस की बूँदें
ढेर सारी हवाएं, कलियों की खुशबू
एक प्यारा सा , साथ बनकर तुम्हारा
तुम्हारे इस जीवन को चाँद तारों
की चमक देकर,उस क्षितिज पर
पंहुचा दें जहाँ से सिर्फ़ आसमा ही
आसमान नजर आए,पैर जमीं पर हो
पर तारों का संग नज़र आए
Friday, February 13, 2009
Thursday, February 12, 2009
Yadoon Se..
उस दिन जो बीज तुमने बोया था,
मेरे मन की क्यारी मैं.
वह आज तक महक रहा है यादों की फुलवारी में.
यह अलग बात है,
आज न में रही न हे तुम
दोनों हे भीड़ में खो गए
भले हे आज हम गेर हो गए.
लेकिन वह फूल आज भी तरोताजा है
उतना ही प्यार समेटे है अपनी पन्खुदिओं में
जितना उस दिन तुम्हारी आंखों में था.
मेरे मन की क्यारी मैं.
वह आज तक महक रहा है यादों की फुलवारी में.
यह अलग बात है,
आज न में रही न हे तुम
दोनों हे भीड़ में खो गए
भले हे आज हम गेर हो गए.
लेकिन वह फूल आज भी तरोताजा है
उतना ही प्यार समेटे है अपनी पन्खुदिओं में
जितना उस दिन तुम्हारी आंखों में था.
Jeevan Ke IseMod Per
एक सुबह,
नम मिटटी पर, दो नन्हे नन्हे पाँव,
कहीं दूर से आ रहे थे,
मेरे मन की रेत पेर,
धयान से देखा.
तो वो पद चिन्ह मेरे ही थे,
देख केर हँसी मैं ,कितने प्यारे थे.
वो बचपन के पदचिन्ह.
फिर अपने पदचिन्हों को देखा मने,
कितने ज़ख्म,कितनी दरारें
कहीं कहीं उभरी हुई रक्त की लाकेर्रें थी.
क्यों हुआ ऐसा ?
नही चाहा था मैंने ऐसा!!
आज ढूंढ़ता है मन, वही पदचिन्ह
जीवन के इसे मोड़ पैर.
नम मिटटी पर, दो नन्हे नन्हे पाँव,
कहीं दूर से आ रहे थे,
मेरे मन की रेत पेर,
धयान से देखा.
तो वो पद चिन्ह मेरे ही थे,
देख केर हँसी मैं ,कितने प्यारे थे.
वो बचपन के पदचिन्ह.
फिर अपने पदचिन्हों को देखा मने,
कितने ज़ख्म,कितनी दरारें
कहीं कहीं उभरी हुई रक्त की लाकेर्रें थी.
क्यों हुआ ऐसा ?
नही चाहा था मैंने ऐसा!!
आज ढूंढ़ता है मन, वही पदचिन्ह
जीवन के इसे मोड़ पैर.
अच्छा लगा..
उस भरी महफिल में उसका चंद लम्हों के लिए
मुझसे मिलना, बात करना, देखना अच्छा लगा.
जिसका सच होना किसी सूरत से भी मुमकिन न था,
ऐसी ऐसी बातें अक्सर सोचना अच्छा लगा
वो तो क्या आता मगर खुशफहमियों
के साथ साथ सारी रात,
हमको जागना अच्छा लगा.
मुझसे मिलना, बात करना, देखना अच्छा लगा.
जिसका सच होना किसी सूरत से भी मुमकिन न था,
ऐसी ऐसी बातें अक्सर सोचना अच्छा लगा
वो तो क्या आता मगर खुशफहमियों
के साथ साथ सारी रात,
हमको जागना अच्छा लगा.
छोटी सी ख्वाहिश.....
मेरे दिल के किसी कोने में, एक मासूम बच्चा ,
बड़ों की दुनिया देखकर बड़ा होने से डरता है.!!!!
छत लिखते है दर- दरवाजे लिखते है,
हम भी किस्से कैसे कैसे लिखते है.
चोटी सी खवाहिश है कब पुरी होगी.
वैसा लिखे जसे बच्चे लिखते है.
बड़ों की दुनिया देखकर बड़ा होने से डरता है.!!!!
छत लिखते है दर- दरवाजे लिखते है,
हम भी किस्से कैसे कैसे लिखते है.
चोटी सी खवाहिश है कब पुरी होगी.
वैसा लिखे जसे बच्चे लिखते है.
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