Thursday, February 12, 2009

Jeevan Ke IseMod Per

एक सुबह,
नम मिटटी पर, दो नन्हे नन्हे पाँव,
कहीं दूर से आ रहे थे,
मेरे मन की रेत पेर,
धयान से देखा.
तो वो पद चिन्ह मेरे ही थे,
देख केर हँसी मैं ,कितने प्यारे थे.
वो बचपन के पदचिन्ह.
फिर अपने पदचिन्हों को देखा मने,
कितने ज़ख्म,कितनी दरारें
कहीं कहीं उभरी हुई रक्त की लाकेर्रें थी.
क्यों हुआ ऐसा ?
नही चाहा था मैंने ऐसा!!
आज ढूंढ़ता है मन, वही पदचिन्ह
जीवन के इसे मोड़ पैर.

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